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जन सरोकारों से परिपूर्ण है अनूपपुर की पत्रकारिता


जब हमने कलेक्टर के अर्दली का अभिनन्दन किया .

( मनोज द्विवेदी - अनूपपुर , म प्र )
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अनूपपुर की पत्रकारिता अनेकता में एकता के साथ विविधताओं का पर्याय मानी जाती रही है। दिल्ली , भोपाल के पत्रकारों को भले ही छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित चार विकासखंडों वाले  छोटे से जिले अनूपपुर के पत्रकार चींटी, पिस्सू , मक्खी नजर आते हों.... लेकिन " कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी " की तर्ज पर बड़ी सोच के साथ हम कुछ ना कुछ नया और अद्भुत ही करते रहे हैं। अनुपम है अनूपपुर जिले की पत्रकारिता । जो समझ गया ...वो तर गया । जो समझ से गया...उस पर कोई टिप्पणी नहीं । 
ऐसी दर्जनों घटनाओं में से एक घटना पर मेरी प्रस्तुति है। इस घटना के कुछ ही प्रमुख प्रत्यक्ष साझेदार हैं, जिनमें वरिष्ठ पत्रकार अजीत मिश्रा, सुघड समझ के सलीकेदार पत्रकार मुकेश मिश्रा तथा हरफनमौला राजेश मिश्रा ( पयासी ) शायद उस वक्त भी मेरे साथ कलेक्ट्रेट परिसर में थे ,जब 2014 के प्रारंभिक दिनों में म प्र श्रमजीवी पत्रकार संघ के संभागीय आयोजन में शामिल होने के लिये हम तत्कालीन कलेक्टर नन्दकुमारम साहब को आमंत्रित करने गये थे। वे दोपहर भोजन के लिये बंगले पर गये थे। समयाभाव के कारण उनसे मोबाईल पर मेरी सद्भावना पूर्ण बात हुई। विभिन्न परिस्थितियों के चलते वे हमारे कार्यक्रम में आने में असमर्थ थे। ऐसे मे त्वरित बुद्धि से निर्णय करते हुए हमने सर्वसम्मति से कलेक्टर की अनुपस्थिति में उनके द्वारपाल का सार्वजनिक अभिनन्दन करने का निर्णय लिया। इसके पीछे हमारा तर्क था कि मन्दिर के देवी - देवता की तरह उसके द्वारपाल का भी बराबर महत्व होता है। ना सही जिले के शीर्ष अधिकारी....सबसे छोटे कर्मचारी का सम्मान करना भी स्वयं सम्मानित होने जैसा था। 
कलेक्टर के अर्दली, मेरे मित्र , गुलाब जी से हमने निवेदन किया। उन्होंने सहर्ष कार्यक्रम में आने की सहमति दी। 
कार्यक्रम स्थल पर गुलाब सिंह बाकायदा अवकाश लेकर आए। अन्य पांरपरिक कार्यक्रमों के बीच मंचासीन मुख्य अतिथि भाजपा के राष्ट्रीय विचारक, संगठक, समाजसेवी भगवत शरण माथुर, म प्र श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रांतीय अध्यक्ष शलभ भदौरिया, कोतमा विधायक मनोज अग्रवाल, पुष्पराजगढ विधायक फुन्देलाल सिंह के साथ गणमान्य नागरिकों , शहडोल- उमरिया- अनूपपुर के पत्रकार बन्धुओं के बीच गुलाब सिंह का मुख्य अतिथि एवं कार्यक्रम अध्यक्ष ने साल, श्रीफल, पुष्पमाला, प्रतीक चिन्ह से सार्वजनिक अभिनन्दन किया तो यह हमारा भाव था कि मानो गुलाब सिंह के बहाने समूचे जिला प्रशासन , अधिकारियों ,कर्मचारियों को हमने अभिनन्दित किया। यह समाज के अलग - अलग छोर पर बैठे सिस्टम के विभिन्न अंगों को सद्भावना के मजबूत धागे से जोडने का छोटा सा प्रयास मात्र था। 
समय बदला है ...लोग बदले हैं। बेरोजगारी की भयावहता तथा मीडियाई चकाचौंध के बीच पत्रकारिता पेट पालने का चारागाह सी बन गयी है। ना सीखने की चाहत है, ना समझने की मंशा। ना वरिष्ठ पत्रकारों के लिये मन में आदर है , ना नजरों का बाल बराबर लिहाज। कोई भी , कहीं से समाचार पत्र बेंचने की एजेंसी लेकर या चैनलों के खुले बाजार से आई डी कैमरा लेकर या वेब पोर्टल डिजाइन करवा कर पत्रकार का कार्ड गर्दन मे लटकाए आपको धकियाने की कोशिश करता दिख जाएगा। इसी के साथ सोशल मीडिया पर आधी  अधूरी सूचनाएं , धमकियां खबरों की शक्ल में फेंकने का शगल शुरु  हुआ है। यह पत्रकारिता नहीं है....पत्रकारिता के अलावा सब कुछ है, कुछ भी है.....लेकिन सच्ची पत्रकारिता तो बिल्कुल भी नहीं है। समाज, प्रशासन, राजनेता भी इस टुक्कडखोरी को समझ गये हैं। तभी आए दिन  तथाकथित पत्रकार प्रताडना की खबरें बाढ सी बढ गयी हैं। चिंता ना करें ....ये हर दौर में हुआ है....पहले भी था... आज भी है....आगे भी होता रहेगा। प्रकृति तथा समय सब सही कर लेगें। टिकेगा वही ...जो टिकने योग्य ,सुयोग्य होगा। वरना बाढ में कचरे ही उतराते हैं ....फिर उतर जाते हैं।

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